Kulgeet

Home  »  Kulgeet

प्राची में मंगल स्वर गूँजे, जगी चेतना की नवधरा |
वाणी ने छेड़ा सुर सरगम, मिटा अनता का अधियारा | |
गूँज उठा सन्देश-ज्ञानान्मोक्षो जायते |
ज्ञाना-मोक्षो जायते |
यह कशी की भूमि सत्य-शिव-सुन्दर का साकार यहाँ |
धर्म चक्र की जगी कल्पना, सजा बुद्ध का प्यार यहाँ | |
उपजा नव राकेश-ज्ञाना-मोक्षो जायते |
ज्ञाना-मोक्षो जायते |
गंगा की ममता धरती पर, हरियाली बन छाती है |
अम्बर से जो गिरी बूँद, वह अमृत सिन्धु बन जाती है | |
ऋषि-सिद्धि का देश-ज्ञाना-मोक्षो जायते |
ज्ञाना-मोक्षो जायते | |
दिश-दिश से मंगलकारी ज्ञाना सिमट कर आता है |
साहस, शक्ति, विवेक जगाकर हमको मुक्त बनाता है | |
ऋषियों का आदेश-ज्ञाना-मोक्षो जायते |
ज्ञाना-मोक्षो जायते | |
अपना यह विद्या मन्दिर है, पीठ कर्मो का ज्ञान का |
दीप साधना का ज्योति है, छटा तिमिर अज्ञान का |
धरा स्वप्न ने वेश-ज्ञाना-मोक्षो जायते |
ज्ञाना-मोक्षो जायते | |
हम है इस प्रकाश के प्रहरी, इसको अमर बनायेंगे |
हम धरती से असद्-मृत्यु, तम और विकार मिटायेंगे |
यह अपना उद्देश्य-ज्ञाना-मोक्षो जायते |
ज्ञाना-मोक्षो जायते | |